नमस्कार दोस्तों में नदीम चौहान उन सभी दोस्तों का बहुत बहुत स्वागत करता हूँ जो दोस्त लगे हुए है सिविल सेवा की तैयारी में
दोस्तों आज में आपको सिविल सेवा के लिए कुछ प्रेरक कहानिया बताने जा रहा हूँ
दोस्तों आप सभी जानते होगे देखते होगे की ज्यादातर छात्र बहुत ही सुखसमृद्धि से अपनी तयारी करते है उनको किसी भी तरह की प्रॉब्लम नहीं होती जैसे किताब , बिजली आदि लेकिन कुछ छात्र ऐसे भी होते जो अपना जीवनयापन बहुत ही कठिनाइयों से करते है उनकी तयारी में बहुत सी मुश्किलें आती है जैसे उनको अच्छी सुविधाए कम ही मिलती है और भी बहुत से संघर्ष कर के कुछ छात्र सिविल सेवा को क्रैक कर जाते है
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दोस्तों आज में आपको सिविल सेवा के लिए कुछ प्रेरक कहानिया बताने जा रहा हूँ
दोस्तों आप सभी जानते होगे देखते होगे की ज्यादातर छात्र बहुत ही सुखसमृद्धि से अपनी तयारी करते है उनको किसी भी तरह की प्रॉब्लम नहीं होती जैसे किताब , बिजली आदि लेकिन कुछ छात्र ऐसे भी होते जो अपना जीवनयापन बहुत ही कठिनाइयों से करते है उनकी तयारी में बहुत सी मुश्किलें आती है जैसे उनको अच्छी सुविधाए कम ही मिलती है और भी बहुत से संघर्ष कर के कुछ छात्र सिविल सेवा को क्रैक कर जाते है
आपने आईएएस बनने की इच्छा रखने वालों की प्रेरक कहानियों को जरूर सुना– पढ़ा होगा
लेकिन नीचे दी जा रही ऐसी 5 कहानियां संभवतः आपकी सोच की दिशा बदल दे। आइए इन व्यक्तियों की शानदार सफलता
की कहानियों और उपलब्धियों को पढ़कर अपने उत्साह को रिचार्ज करें।
1. अंसार अहमद शेख (21 वर्षीय)– ऑटो चालक का बेटा
1. अंसार अहमद शेख (21 वर्षीय)– ऑटो चालक का बेटा
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अंसार अहमद
शेख यूपीएससी सिविल सर्विसेस परीक्षा में सफल होने वाले सबसे युवा उम्मीदवार हैं।
उन्होंने यह उपलब्धि 2015 में अपने पहले ही प्रयास में सफलता अर्जित कर
हासिल की। उस समय इनकी उम्र मात्र 21 वर्ष थी।
इनका अखिल भारतीय रैंक 361 था।
अंसार शेख
ऑटो रिक्शा चलाने वाले के बेटे और एक मैकेनिक के भाई हैं। महाराष्ट्र के जालना
गांव के गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं। अपनी कमजोर
आर्थिक स्थिति के बावजूद अनवर ने शुरुआत से ही पढ़ाई में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया
और पुणे के प्रतिष्ठिक कॉलेज में बी.ए. (राजनीति विज्ञान) में दाखिला लिया। दृढ़
इच्छाशक्ति से प्रेरित अनवर ने यूपीएससी परीक्षाओं की तैयारी के साथ–साथ लगातार
तीन वर्षों तक रोजाना 12 घंटों तक काम किया।
इन्होंने धार्मिक भेदभाव समेत सभी प्रकार की बाधाओं पर जीत हासिल की और भारत
के सबसे प्रतिष्ठित प्रतियोगी परीक्षा यूपीएससी में सफलता अर्जित की। गरीब
रुढ़ीवादी मुस्लिम परिवार के अंसार की उपलब्धि वाकई प्रशंसनीय है। कठिन
प्रतियोगिता (कड़ी प्रतिस्पर्धा ) के इस दौर में अपनी पहचान के लिए संघर्ष करने
वाले कई गरीब उम्मीदवारों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं अनवर।
2. कुलदीप द्विवेदी (27 वर्षीय) आईपीएस– सुरक्षा गार्ड का बेटा
2. कुलदीप द्विवेदी (27 वर्षीय) आईपीएस– सुरक्षा गार्ड का बेटा
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वर्ष 2015 में
यूपीएससी द्वारा आयोजित की गई सिविल सेवा परीक्षा में कुलदीप द्विवेदी की अखिल
भारतीय रैंक 242 रही। लखनउ विश्वविद्यालय में सुरक्षा गार्ड का काम करने वाले के बेटे कुलदीप
द्विवेदी ने यह साबित कर दिया कि यदि आपमें सफल होने की इच्छाशक्ति है तो कोई भी
बाधा उसे रोक नहीं सकती। इनके पिता सूर्यकांत द्विवेदी लखनऊ विश्वविद्यालय में
सुरक्षा गार्ड के तौर पर काम करते हैं और पांच लोगों के परिवार का लालन– पालन करते
हैं। लेकिन सूर्य कांत की कमजोर आर्थिक स्थिति भी उनके बेटे को भारतीय समाज में
सबसे प्रतिष्ठित नौकरी हासिल करने हेतु प्रोत्साहित करने से न रोक सकी। उन्होंने
अपने बेटे की महत्वाकांक्षा का सिर्फ नैतिक रूप से बल्कि अपनी क्षमता के अनुसार
आर्थिक रूप से भी समर्थन किया। नतीजों के घोषित होने के बाद भी पूरे परिवार के लिए
यह विश्वास करना मुश्किल हो रहा था कि उनके सबसे छोटे बेटे
ने अपने जीवन की सबसे बड़ी खुशी हासिल कर ली है।
संघ लोक
सेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा आयोजित की जाने वाली लोक सेवा परीक्षा में रैंक लाने
का अर्थ क्या है, यह अपने परिवार को समझाने में कुलदीप द्विवेदी को समय लगा। तीन भाईयों और एक
बहन में ये सबसे छोटे हैं और बचपन से ही सिविल सेवक बनना चाहते थे।
कुलदीप
द्विवेदी ने 2009 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक किया था
और 2011 में अपने स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की।
उन्होंने साबित कर दिखाया कि कड़ी मेहन किसी की परिस्थितियों पर निर्भर नहीं करती
और खुद की क्षमताओं पर भरोसा करना सबसे महत्वपूर्ण है। उनकी सफलता दृढ़– संकल्प एवं
लक्ष्य पर केंद्रित मन और पिता के प्रयासों का उदाहरण है। इन्होंने अपनी गरीबी को
पीछे छोड़ते हुए सफलता के लिए काफी मेहनत की।
3. श्वेता अग्रवाल– पंसारी की बेटी
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एक और दिल
को छू लेने वाली कहानी। भद्रेश्वर के पंसारी की बेटी – श्वेता
अग्रवाल जिन्होंने 2015 में हुई यूपीएससी की परीक्षा में 19वीं रैंक
हासिल कर अपने आईएएस बनने के सपने को साकार किया। इनके संघर्ष की कहानी कई बाधाओँ
को पार करने से भरी है। इसमें मूलभूत शिक्षा सुविधाओँ से लेकर यूपीएससी परीक्षा 2015 की अव्वल 3 महिला
उम्मीदवारों में आना तक शामिल है। वे बताती हैं कि कैसे गरीबी से लड़ते हुए उनके
माता– पिता ने उन्हें जितनी संभव हो सकती थी अच्छी शिक्षा प्रदान की। श्वेता को अपने
माता– पिता पर बेहद गर्व है और समाज की जिस तरह से सेवा करने की शिक्षा उन्होंने
श्वेता को दी है, उसकी वे हमेशा प्रशंसा करती हैं।
श्वेता ने अपनी स्कूली शिक्षा सेंट जोसेफ कॉन्वेंट बंदेल स्कूल से पूरी की। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद श्वेता ने सेंट जेवियर्स कॉलेज कोलकाता से आर्थशास्त्र में स्नातक किया।
श्वेता ने इससे पहले यूपीएससी परीक्षा दो बार पास की, लेकिन वे आईएएस अधिकारी ही बनना चाहती थी। बंगाल कैडर में शामिल होने पर श्वेता को गर्व है और यह भी सोचती हैं कि ज्यादातर युवा सिविल सेवा से इसलिए दूर रहते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उन्हें जनता की बजाय राजनीतिक आकाओं के मातहत काम करना पड़ेगा। यह हमेशा कहा जाता है कि मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की के माता–पिता द्वारा उनके महत्वाकांक्षी सपनों को समर्थन देना बहुत मुश्किल होता है l लेकिन लैंगिक भेद समेत सभी प्रकार की बाधाओँ को पीछे छोड़ते हुए श्वेता अग्रवाल और उनका परिवार बिना शर्त की जाने वाली कड़ी मेहनत और लगन का उदाहरण है।
श्वेता ने अपनी स्कूली शिक्षा सेंट जोसेफ कॉन्वेंट बंदेल स्कूल से पूरी की। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद श्वेता ने सेंट जेवियर्स कॉलेज कोलकाता से आर्थशास्त्र में स्नातक किया।
श्वेता ने इससे पहले यूपीएससी परीक्षा दो बार पास की, लेकिन वे आईएएस अधिकारी ही बनना चाहती थी। बंगाल कैडर में शामिल होने पर श्वेता को गर्व है और यह भी सोचती हैं कि ज्यादातर युवा सिविल सेवा से इसलिए दूर रहते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उन्हें जनता की बजाय राजनीतिक आकाओं के मातहत काम करना पड़ेगा। यह हमेशा कहा जाता है कि मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की के माता–पिता द्वारा उनके महत्वाकांक्षी सपनों को समर्थन देना बहुत मुश्किल होता है l लेकिन लैंगिक भेद समेत सभी प्रकार की बाधाओँ को पीछे छोड़ते हुए श्वेता अग्रवाल और उनका परिवार बिना शर्त की जाने वाली कड़ी मेहनत और लगन का उदाहरण है।
4. नीरीश राजपूत– दर्जी का बेटा
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नीरीश
राजपूत के पिता वीरेन्द्र राजपूत एक दर्जी हैं । मध्य प्रदेश के भिंड जिले का एक
गरीब युवा हैं, इन्होंने बेहद कठिन सिविल सेवा पीरक्षा में पास होने के
लिए सभी मुश्किलों को पार किया और साबित किया कि गरीबी सफलता के लिए बाधा नहीं है।
सिविल सेवा
के पिछले तीन प्रयासों में वे विफल रहे थे लेकिन इन्होंने हार नहीं मानी। चौथे
प्रयास में वे 370वीं रैंक के साथ पास हुए। वे गोहाड तहसील के मउ गांव में 300 वर्ग फीट के
घर में रहते थे। सिविल सेवक बनने के अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने अखबार
डालने जैसे कई प्रकार के काम भी किए।
उन्हें नहीं पता था कि आईएएस अधिकारी कैसे बने लेकिन वे जानते थे कि देश के शीर्ष परीक्षा में सफल होने के बाद वे अपना भाग्य बदल सकते हैं और उन्हें विश्वास था कि यदि कोई दृढ़ संकल्पी हो और कड़ी मेहनत करने को तैयार हो तो गरीबी उसकी सफलता की राह में बाधा नहीं हो सकती। वे सरकारी स्कूल और फिर ग्वालियर के औसत दर्जे के कॉलेज से पढ़े थे। उनके दो बड़े भाई जो अनुबंध शिक्षक हैं, ने नीरीश के सपने को साकार करने के लिए अपनी अधिकांश जमापूंजी, ऊर्जा और हिम्मत नीरीश को सौंपी। उन्होंने इस मिथक को भी तोड़ा कि पब्लिक स्कूल के छात्र ही इन परीक्षाओं में अच्छा कर सकते हैं।
उन्हें नहीं पता था कि आईएएस अधिकारी कैसे बने लेकिन वे जानते थे कि देश के शीर्ष परीक्षा में सफल होने के बाद वे अपना भाग्य बदल सकते हैं और उन्हें विश्वास था कि यदि कोई दृढ़ संकल्पी हो और कड़ी मेहनत करने को तैयार हो तो गरीबी उसकी सफलता की राह में बाधा नहीं हो सकती। वे सरकारी स्कूल और फिर ग्वालियर के औसत दर्जे के कॉलेज से पढ़े थे। उनके दो बड़े भाई जो अनुबंध शिक्षक हैं, ने नीरीश के सपने को साकार करने के लिए अपनी अधिकांश जमापूंजी, ऊर्जा और हिम्मत नीरीश को सौंपी। उन्होंने इस मिथक को भी तोड़ा कि पब्लिक स्कूल के छात्र ही इन परीक्षाओं में अच्छा कर सकते हैं।
5. ह्रदय कुमार – किसान का बेटा
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ओडीशा के केंद्रपाड़ा जिले का सूदूर गांव
अंगुलाई के बीपीएल किसान के बेटे ह्रदय कुमार ने सिविल सेवा परीक्षा 2014 में 1079वीं रैंक
हासिल की थी। वंचित पृष्ठभूमि का होने के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी और
अपने लक्ष्य को प्राप्त किया। इनका परिवार सरकार द्वारा चलाई गई
सामाजिक कल्याण फ्लैगशिप कार्यक्रम इंदिरा आवास योजना के तहत मिले घर में रहता था।
ह्रदय कुमार ने सरकारी प्राथमिक एवं उच्च विद्यालय से प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की। 12वीं की परीक्षा इन्होंने द्वितीय श्रेणी में पास की थी लेकिन वे क्रिकेट में अच्छे थे और क्रिकेट में ही करिअर बनाना चाहते थे। इन्होंने कालाहांडी अंतरजिला क्रिकेट प्रतियोगिता में अपने घरेलू जिला टीम का प्रतिनिधित्व भी किया था। लेकिन नियति ने उनके लिए कुछ और ही तय कर रखा था तथा खेल करिअर में आगे बढ़ने की अनिश्चितताओं ने उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में करिअर चुनने को विवश किया। माध्यमिक शिक्षा पूरी करने के बाद इन्होंने उत्कल विश्वविद्यालय में पांच– वर्षों के समेकित एमसीए कोर्स में दाखिला लिया। पढ़ाई के लिए मिले माहौल का उन्होंने बेहतर इस्तेमाल किया और सिविल सेवा परीक्षा में अपना भाग्य आजमाया। लेकिन पहले दो प्रयासों में ये मेधा सूची में आने में विफल रहें ।
ह्रदय कुमार ने सरकारी प्राथमिक एवं उच्च विद्यालय से प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की। 12वीं की परीक्षा इन्होंने द्वितीय श्रेणी में पास की थी लेकिन वे क्रिकेट में अच्छे थे और क्रिकेट में ही करिअर बनाना चाहते थे। इन्होंने कालाहांडी अंतरजिला क्रिकेट प्रतियोगिता में अपने घरेलू जिला टीम का प्रतिनिधित्व भी किया था। लेकिन नियति ने उनके लिए कुछ और ही तय कर रखा था तथा खेल करिअर में आगे बढ़ने की अनिश्चितताओं ने उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में करिअर चुनने को विवश किया। माध्यमिक शिक्षा पूरी करने के बाद इन्होंने उत्कल विश्वविद्यालय में पांच– वर्षों के समेकित एमसीए कोर्स में दाखिला लिया। पढ़ाई के लिए मिले माहौल का उन्होंने बेहतर इस्तेमाल किया और सिविल सेवा परीक्षा में अपना भाग्य आजमाया। लेकिन पहले दो प्रयासों में ये मेधा सूची में आने में विफल रहें ।
अन्य प्रेरक कहानियां–
6. मनोज कुमार रॉय– अंडा विक्रेता से सिविल सेवक
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इन्होंने
चौथे प्रयास में यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा पास की और अब भारतीय आयुध निर्माणी
सेवा (आईओएफएस) अधिकारी के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। सप्ताहांत वे अपने
राज्य के गरीब छात्रों को यूपीएससी परीक्षा में पास होने के लिए पढ़ाते हैं।
दिल्ली में अपने संघर्ष के दिनों में उन्होंने अंडे बेचे, सब्जियां
बेचीं और यहां तक कि पैसे कमाने के लिए दफ्तर में पोछा लगाने का भी काम किया।
के. जयगणेश– वेटर से आईएएस अधिकारी बनने का सफर
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के. जयगणेश
सिविल सेवा परीक्षा में छह बार विफल हुए लेकिन कभी हार नहीं मानी। अपने अंतिम
प्रयास में वे 156वें रैंक से पास हुए और भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए चुने गए। जयगणेश
तमिलनाडु के एक गांव के बेहद गरीब परिवार से हैं और फिर भी वे इंजीनिर बनें । कई
तरह के काम किए। आईएएस अधिकारी बनने के अपने सपने को पूरा करने के लिए वेटर का भी
काम किया।
गोविंद जायसवाल– रिक्शाचालक का बेटा![http://www.jagranjosh.com/imported/images/E/Articles/GOVIND-JAISWAL.jpg](file:///C:/Users/Admin/AppData/Local/Temp/msohtmlclip1/01/clip_image001.jpg)
![http://www.jagranjosh.com/imported/images/E/Articles/GOVIND-JAISWAL.jpg](file:///C:/Users/Admin/AppData/Local/Temp/msohtmlclip1/01/clip_image001.jpg)
इनके पिता
ने कड़ी मेहनत की, अपनी आजीविका की एक मात्र साधन जमीन बेच दी ताकि गोविंद की पढ़ाई हो सके। अपने
पिता के संघर्षों और सपने को पूरा करते हुए गोविंद ने 2006 की सिविल
सेवा परीक्षा 48वीं रैंक के साथ पास की।
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