सिविल सेवा परीक्षा के अंतर्गत मुख्य सर्विस तो तीन ही मानी जाती है
- भारतीय प्रशासनिक सेवा
- भारतीय पुलिस सेवा
- भारतीय वन सेवा
आईएएस
भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), भारत सरकार की प्रमुख सेवा का गठन 1946 में हुआ था। इससे पहले इंडियन इंपीरियल सर्विस (1893-1946) हुआ करती थी। सिविल सर्विसेज भारत में प्रशासन का हॉलमार्क है। संविधान कहता है कि स्वयं के सिविल सेवाओं के गठन के उनके अधिकार को वंचित किए बिना एक अखिल भारतीय सेवा होगी जिसमें आम योग्यताओं, एक समान वेतनमान के आधार पर अखिल भारतीय आधार पर भर्ती की जाएगी और इसके सदस्यों को संघ के किसी भी स्थान पर इन रणनीतिक पदों पर नियुक्त किया जा सकता है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि स्वंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं में से एक सरदार वल्लभ भाई पटेल ने आईसीएस को देश का इस्पात ढांचा (स्टील फ्रेम) कहा था। इसलिए, सिविल सेवा हमारे देश की अनिवार्य भावना – विविधता
मुख्य अधिकार
आईएएस अधिकारी अपने कार्य क्षेत्र में आने वाले स्थान में कानून और व्यवस्था के रख–रखाव, राजस्व प्रशासन और आम प्रशासन के लिए जिम्मेदार होते हैं। उनके अधिकारों में मोटे तौर पर शामिल हैं–
- राजस्व का संग्रह करना और राजस्व संबंधी मामलों में अदालत के तौर पर काम करना
- कानून और व्यवस्था बनाए रखना
- कार्यकारी मजिस्ट्रेट के तौर पर काम करना
- मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ)/ जिला विकास आयुक्त के तौर पर काम करना
- राज्य सरकार और केंद्र सरकार की नीतियों के कार्यान्वयन का पर्यवेक्षण
- वित्तीय औचित्यों के मानदंडों के अनुसार सरकारी पैसे के खर्च का पर्यवेक्षण।
- नीति निर्माण और फैसला करने की प्रक्रिया में अलग– अलग स्तरों जैसे सचिव, उप सचिव आदि पर आईएएस अधिकारी अपना योगदान देते हैं और नीतियों को अंतिम रूप प्रदान करते हैं।
- सरकार के दैनिक कामकाज को संभालना जिसमें संबंधित मंत्रालय के प्रभारी मंत्री के साथ विचार– विमर्श कर नीति बनाना और उसे लागू करना भी शामिल है।
आईपीएस
भारतीय पुलिस सेवा या आईपीएस, भारत सरकार के तीन अखिल भारतीय सेवाओं में से एक है। वर्ष 1948 में ब्रिटेन से स्वतंत्रता मिलने के एक वर्ष के बाद भारतीय (इंपेरियल) पुलिस का स्थान भारतीय पुलिस सेवा ने ले लिया था। पहले पुलिस आयोग का गठन 17 अगस्त 1865 को हुआ था, इसमें भारत में पुलिस की वांछित प्रणाली के लिए विस्तार से दिशानिर्देश निहित हैं और पुलिस को इसमें सरकारी विभाग के तौर पर परिभाषित किया गया है जो कानून लागू करती है और अपराध को होने से रोकती और उसकी पड़ताल करती है। भारतीय पुलिस सेवा खुद में एक बल नहीं है बल्कि राज्य की पुलिस और अखिल भारतीय केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के कर्मचारियों के लिए सेवा प्रदान करने वाले नेता और कमांडर्स हैं। इसके सदस्य पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी होते हैं।
भारतीय पुलिस सेवा या आईपीएस, भारत सरकार के तीन अखिल भारतीय सेवाओं में से एक है। वर्ष 1948 में ब्रिटेन से स्वतंत्रता मिलने के एक वर्ष के बाद भारतीय (इंपेरियल) पुलिस का स्थान भारतीय पुलिस सेवा ने ले लिया था। पहले पुलिस आयोग का गठन 17 अगस्त 1865 को हुआ था, इसमें भारत में पुलिस की वांछित प्रणाली के लिए विस्तार से दिशानिर्देश निहित हैं और पुलिस को इसमें सरकारी विभाग के तौर पर परिभाषित किया गया है जो कानून लागू करती है और अपराध को होने से रोकती और उसकी पड़ताल करती है। भारतीय पुलिस सेवा खुद में एक बल नहीं है बल्कि राज्य की पुलिस और अखिल भारतीय केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के कर्मचारियों के लिए सेवा प्रदान करने वाले नेता और कमांडर्स हैं। इसके सदस्य पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी होते हैं।
मुख्य अधिकार
- सार्वजनिक शांति और व्यवस्था बनाए रखने, अपराध की रोकथाम, जांच और पहचान, सूचना एकत्र करना, वीआईपी सुरक्षा, आतंकवाद का मुकाबला, सीमा पुलिस, रेलवे पुलिस आदि के क्षेत्रों में व्यापक जिम्मेदारियों को पूरा करना।
- रॉ (R&AW), आईबी, सीबीआई, सीआईडी आदि जैसी भारतीय सतर्कता एजेंसियों का नेतृत्व करना और उनकी कमान संभालना।
- केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) जैसे सीआरपीएफ, सीआईएसएफ, एनएसजी, आईटीबीपी, बीएसएफ आदि का नेतृत्व करना और उनकी कमान संभालना।
- मंत्रालयों और केंद्र एवं राज्य सरकारों के विभागों एवं केंद्र और राज्य, भारत सरकार, दोनों ही में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में नीति निर्माण में विभाग प्रमुख के तौर पर सेवाएं देना।
- अन्य अखिल भारतीय सेवाओं के सदस्यों और भारतीय सशस्त्र बल खास कर भारतीय थल सेना के साथ बातचीत करना और समन्वय स्थापित करना।
- अपनी निगरानी में पुलिस बलों में ऐसे मूल्यों और मानकों को विकसित करने का प्रयास करना जिससे उन्हें जनता की और बेहतर तरीक से सेवा करने में मदद मिल सके।
- आईएफएसभारतीय विदेश सेवा का मूल ब्रिटिश शासन में मिलता है जब "विदेशी यूरोपीय शक्तियों" के साथ व्यापार करने के लिए विदेश विभाग का गठन किया गया था। वर्ष 1843 में गवर्नर जनरल एलनबर्ग ने प्रशासनिक सुधार किए जिसमें सरकार का सचिवालय चार विभागों– विदेश, गृह, वित्त और सैन्य, में व्यवस्थित किया गया। इनमें से प्रत्येक का प्रमुख सचिव स्तर का अधिकारी होता था। विदेश विभाग के सचिव को " सरकार के सभी बाहरी एवं आंतरिक राजनयिक संबंधों से संबंधित पत्राचार " करने का काम सौंपा गया था।सितंबर 1946 में भारत की आजादी की पूर्व संध्या पर भारत सरकार ने भारत के राजनयिक, वाणिज्यदूतावास संबंधी एवं विदेशों में व्यावसायिक प्रतिनिधित्व के लिए भारतीय विदेश सेवा नाम से एक सेवा बनाने का फैसला किया। वर्ष 1947 में ब्रिटिश भारत सरकार में विदेश और राजनीतिक विभाग का सहज परिवर्तन किया गया था जिसमें तत्कालीन विदेश और राष्ट्रमंडल संबंध के नए मंत्रालय बनाए गए थे और 1948 में संघ लोक सेवा आयोग के संयुक्त सिविल सेवा परीक्षा प्रणाली के तहत नियुक्त किए गए प्रथम बैच ने नौकरी शुरु की थी। प्रवेश की यह प्रणाली आज भी भारतीय विदेश सेवा से जुड़ने की प्रमुख प्रणाली बनी हुई है।मुख्य अधिकारविदेश सेवा अधिकारी को भारत के हितों की देख भाल भारत और विदेश, दोनों ही जगहों पर करना होता है। इसमें द्विपक्षीय राजनीतिक और आर्थिक सहयोग, व्यापार और निवेश प्रोन्नति, सांस्कृतिक बातचीत, प्रेम और मीडिया संपर्क के साथ सभी बहुपक्षीय मुद्दों की मेजबानी करना शामिल है।भारतीय राजनयिक के मुख्य अधिकारों को इस प्रकार संक्षेप में बताया जा सकता है–
- भारत का उसके दूतावासों, उच्चायोगों, वाणिज्य दूतावासों और स्थायी मिशनों से लेकर बहुपक्षीय संगठनों जैसे संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व करना,
- अपने पोस्टिंग के देश में भारत के राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना,
- एनआरआई/ पीआईओ समेत रीसीविंग स्टेट के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देना
- जिस देश में नियुक्त किया गया है वहां के विकास पर सटीक रिपोर्ट देना जिनका भारत की नीति निर्माण को प्रभावित करने की संभावना है।
- नियुक्ति वाले देशों में अधिकारियों के साथ विभिन्न मुद्दों, समझौतों पर बातचीत करना और
- विदेश में विदेशियों और भारतीय नागरिकों को काउंसेलर सुविधाएं प्रदान करना।
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